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Thursday 8 October 2020

Adhik Maas Kalashtami 2020: All you need to know about this significant day


Religion

The Kalashtami of the Adhik Maas (leap month) is referred to as Adhik Maas Kalashtami. Today, devotees will worship Kala Bhairava. Read on to know more about this day and Mahadev's most ferocious form.


Adhik Maas Kalashtami Tithi

The Ashtami Tithi, Krishna Paksha of Adhik Maas shall begin at 5:49 PM on October 9 and end at 6:16 PM on October 10.

Who is Kala Bhairava?

Kala or Kaal in Hindi/Sanskrit means time/death. This form of Mahadev epitomises destruction. However, this destruction is not of the good but the evil. Kala Bhairava is depicted with three eyes and terrifying features. 

His pictorial representation shows him with four hands. He holds a sword (talwar) or a noose (pasa) or a snake (sarp) in one of the right hands and a skull (kapal) in the other. In the left hands, he holds a damru (drum) and a trident (trishul). He is often portrayed bare-chested and with protruding teeth. A dog is his vahana.

HINDI

कालाष्टमी को काला अष्टमी भी कहा जाता है। यह दिन भैरव बाबा को समर्पित होता है। भैरव बाबा को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। वह शिवजी के भयावह और क्रोधी स्वरूप का प्रतीक हैं। इस बार कालाष्टमी 9 अक्टूबर को पड़ रही है। एक साल में 12 कालाष्टमी पड़ती है। सभी कालाष्टमी के दिन भैरव बाबा की पूजा और उनके लिए उपवास रखा जाता है।

साथ ही पूर्णिमा के बाद अष्टमी तिथि को भगवान भैरव की पूजा करने के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है। रविवार या मंगलवार को पड़ने वाली कालाष्टमी को महत्व माना जाता है। साथ ही अधिकमास में पड़ने वाली कालाष्टमी की पूजा का पुण्य लाभ दोगुना मिलता है। तो आइए कालाष्टमी पूजा कथा के साथ ही पूजन विधि और इसका महत्व जानें।

काल भैरव बाबा की पूजा और व्रत करने से मनुष्य के सभी प्रकार के रोग और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।  मान्यता के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना करना बहुत ही कल्याणकारी माना गया है। हनुमान जी की तरह वह अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा से देवी शक्ति और भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद मिलता है। कालाष्टमी पर व्रत पूजन करने से मनुष्य को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इस व्रत को  विधि-विधान से करने से सभी कष्ट मिट जाते हैं और काल दूर हो जाता है। इस दिन भगवान के पूजन के साथ व्रत से जुड़ी कथा का भी जरूर सुनना चाहिए। 

कालाष्टमी से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था। पुराणों में शिव के दो रूप बताए गए हैं, एक रूप बटुक ​भैरव और काल भैरव बाबा का है। शिवजी का बटुक भैरव रूप सौम्य है और काल भैरव जी का रूप रौद्र माना गया है।

मासिक कालाष्टमी पर ऐसे करें पूजा

कालाष्टमी पर काल भैरव बाबा को लाल फूल, इत्र, काला धागा, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित कर प्रसाद चढ़ना चाहिए। काल भैरव बाबा को कई जगह शराब चढ़ाने का भी विधान है। साथ ही इस दिन रात के समय चंद्रमा को भी जल चढ़ाना जरूरी है। इसके बाद ही व्रत पूरा होता है। इस दिन भैरव चालीसा का पाठ करने के बाद काले कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। भैरव बाबा का वाहन कुत्ता होता हैं, इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन कराने से विशेष फल की प्राप्ति भक्तों को होती हैं।

कालाष्टमी की पौराणिक कथा

भगवान शिव के क्रोध से भगवान भैरव बाबा प्रकट हुए हैं। इसके पीछे पौराणिक कथा यह है कि एक बार त्रिमूर्ति देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव में बहस हो रही थी कि उनमें से कौन अधिक श्रेष्ठ है। इस बहस में एक बार ब्रह्माजी ने शिव का अपमान कर दिया और तब शिवजी इतने क्रोधित हो गए कि भैरव बाबा उनके माथे से प्रकट हो गए और ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक को अलग कर दिया। ब्रह्मा का कटा हुआ सिर भैरव की बाईं हथेली पर लग गया। भैरव बाबा को इस पाप के भुगतान के लिए भिखारी के रूप में ब्रह्मा जी की खोपड़ी के साथ नग्न अवस्था में भटकना पड़ा। भटकते हुए वह शिव नगरी वाराणसी पहुंचे तब उनके पापों का अंत हुआ। यही कारण है कि वह काशी के कोतवाल माने जाते हैं। उनके दर्शन के बिना कोई काशी वास नहीं कर सकता।

भैरव बाबा की पूजा से सभी कार्य में सफलता, धन, स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है और हर बाधा दूर होती है। कालाष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर काल भैरव बाबा की विधिवत पूजा करें और शाम के समय उनके मंदिर में जा कर उनका दर्शन करें।

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